प्रकाशकीय



संसार में जन्म लेने वाले मनुष्यों को इस प्रकार से भी आसानी पूर्वक दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं एक वो समूह जो इतिहास पढ़ता है और एक वे विरले व्यक्तित्व जो इतिहास में पढ़े जाते हैं।
मानव जाति का प्रत्येक सदस्य अपना प्रारब्ध, वर्तमान कार्य एवं भावी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जीवन पर्यन्त प्रयत्नशील रहता है।
सफर अनन्त इच्छाएं अनन्त फिर अनन्त की विशेषानुकम्पाओं एवं आव्हान के बिना कंटकाकीर्ण मार्गों पर भक्तों का दो कदम चल पाना भी असंभव प्रतीत होता है।
आध्यात्मिक सफर में तो सदगुरु के पर्याप्त मार्ग-दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त भक्त भीड़ में भी वो भक्त हीरे सा चमकता हुआ अकेला ही चलता हुआ दिखाई देता है। चलने वाले सभी सूर्यास्त से पूर्व, अपने-अपने आशियाने में चले जाते हैं। मगर वो अजीब मुसाफिर अपने दिल के उजालों से ही कामयाबी के नए सूर्योदय के विश्वास पर चंाद सितारों का हमझोली एक-एक लम्हें का लुत्फ लेता हुआ सारी-सारी रात अकेला चलता है। वैसे तो हर युग की अपनी मशालें होती हैं मगर अध्यात्म के ऐसे अनेक अथक पथिकों की अनन्त श्रृंखलाओं में एक छोटी सी कड़ी के रुप में ष्अटलष् कवि महन्त बालक दास का नाम भी अपनी अमिट पहचान बना चुका है।
चित्तौड़गढ़ जिले का सुप्रसिद्ध कस्बा छीपों का आकोला जो कपड़ों पर रंगाई-छपाई के लिये अपनी देश विदेश में प्रसिद्धि पा चुका है। उसी गांव में कुम्हार जाति के एक श्रेष्ठ योगीराज श्री भेरा लाल कुम्हार माता उदी बाई की गृहस्थ वाटिका में सात भाई बहिनों में जन्में इस योगी पुत्र को शंकर नाम से पुकारा जाने लगा। योगीराज पिता ने भी अपनी योग-दृष्टि से अध्यात्म की खुशबू से तरबतर शंकर के नटखट बचपन को गहराई तक पहचान लिया।
बाल्यकाल में लम्बी-लम्बी जटाएं तिलक मालाओं से आपका मुस्कुराता हुआ बचपन एक अलग ही प्रकार के आकर्षण का केन्द्र बन चुका था। अध्ययन काल में विद्यालयों में होने वाली अन्त्याक्षरी प्रतियोगिताओं में स्व रचित आशु कविताएं प्रतियोगियों के लिये आश्चर्य के विषय बन जाया करती थीं।
10 वीं कक्षा उतीर्णोपरान्त वन विभाग में फोरेस्टर के पद पर सेवाएं देने लगे तब भी यदा-कदा लेखनी अपनी जादूमयी अभिव्यक्तियां मजलिस में दे दिया करती थीं। अध्यात्म के इस अथक साधक ने राजकीय नौकरी से त्याग-पत्र देकर साधना का मार्ग अपना लिया। रमता जोगी बहता पानी की उक्ति को ंचरितार्थ करते हुए विभिन्न गांवों में आपने अपनी साधनाएं अनवरत रखी। चित्तौड़ जिले के गाॅव भूपालसागर में हास्य कवि अमृतवाणीएवं मेणार निवासी लक्ष्मी लाल मेंनारिया (उस्ताद) से सम्पर्क हुआ। भाटोली, नपानिया, भोपाल सागर, भावरी, राणा तपोवन आश्रम कई स्थानों पर रह कर अध्यात्म अनुभूतियों को भजनों के माध्यम से अमृतमयी अभिव्यक्तियां देते रहे। कुछ समय आप मेनारिया की भाटोली भी रहे। जहां से नन्द लाल, किशन लाल, रामेश्वर सुथार, गौरी शंकर, ओंकार लाल आदि कई भक्त जनों से स्नेहमयी आत्मिक रिश्ते बन गए।
योग गुरु पिताजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षा के अनुसार सतत् साधना में लगे रहे। साथ ही नित नवीन अनुभूतियों को स्वरचित भजनों में रुपान्तरित करने की यह सतत प्रक्रिया लगभग 40 वर्षो तक अनवरत चलती रही। रचनाकार ने अपने अति दुर्लभ आध्यात्मिक अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति हेतु विभिन्न प्रयासों में अपनी ओर से कोेई कसर बाकी नहीं छोड़ी। रुचिशील पाठकों के लिये पंचमेवा जैसी आपकी साहित्यिक रचनाएं परमोपयोगी प्रतीत होती है। हिन्दी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, उर्दू इत्यादि भाषाओं के सम्मिश्रण से निर्मित आपके भजन नवलखा हार की भांति ऐसे स्व प्रकाशवान हंै जो अनन्त आध्यात्मिक रश्मियों से पाठक गणों के अन्तःकरणों को आलोकित करते रहंेगे।
भजनों के अन्तर्गत अभिव्यक्ति हेतु प्रयुक्त शैली आपकी अपनी है। सहज, सरल शब्दावलियों में रहस्यमयी अर्थगत गांभीर्य आपके साहित्य की अद्भुत विशेषता है। 40 वर्षो की अध्यात्मसाधना के परिणाम स्वरुप 200 से अधिक भजनों का संगीतमयी लघु संग्रह अनन्त प्रकाशवान हीरों के हार की भांति आपके अन्तः करण को बह्म लोक की स्वर्णिम आभा से सतत आलोकित करने हेतु बेताब है।

चेतन प्रकाशन