दो शब्द



सभी नदियां जिस तरहां अपने जिगर सागर से मिलने के वास्ते मिलनातुरता की गजलें, गीत, शायरी-रुबाईयों को खुद ही की ईजा़द की गई तरन्नुम में बेताबी के साथ बड़े ही खुश मिजाज़ में किनारों से पक्की दोस्ती फिर भी तनिक शरमाती हुई सी अपनी मस्ती में गुनगुनाती हुई रफ्ता-रफ्ता हर दिन, रात-दिन बिना एक पल रुके जिस जिन्दादिली मुश्तेदी और बैचेनी के साथ पल-पल, आगे से आगे बढ़ती रहती है, ठीक उसी तरहां आत्मा भी परमात्मा से यानि की मन अपने मालिक से रुबरु होने के लिए जन्मों-जन्मों के बेहद लम्बे सफर को अपनी हद के मुताबिक तय करने की हर मुनासिब कोशिशें करती रहती है।
तमाम दिमागी मशक्कत का नतीजा शायद इतना ही निकला है कि हर अन्दरुनी आंख ताजिन्दगी उन दिलकश नजारों की दुनियां की एक झलक के करीबी दीदार के खातिर गजब की इतनी जबरदस्त तलबगार हो जाती है कि जमाने में रहती हुई भी जमाने के मिजाज से बिल्कुल ही बे असर होकर ऐसे जिन्दगी जीती जैसे मच्छलियां पानी में रहती है। वे देखा करती अपनी मंजिल को जैसे अर्जुन देखता था चिड़िया की आंख को। हालांकी वे आंखें भी हकीकत जानती है कि उस दुनियां के हजारों नजारों की एक झलक को भी हू हू बयां करना दुनियां की हर कलम के लिए आज तलक नामुमकीन है, मगर अक्सर जिन्दा दिल कलम का दिल भी इस कदर होता है कि हर वक्त कुछ कहे बगैर और कुछ लिखे बगैर कुछ ना कुछ किए बगैर उसे तसल्ली और सुकून मिलता ही नहीं।
चित्तौड़गढ़ जिले की बड़ीसादड़ी तहसील के अंतर्गत, ब्रह्मकुल की पावन नगरी जिसे मेनारियों की भाटोली के नाम से सर्वत्र जाना जाता है। इस गाॅव की बसावट ही ऐसी है कि किसी भी मार्ग से पहुंचनें का प्रयास करो लगभग 5-7 किमी तो कच्चे रास्तों से सफर करना ही पड़ता है। इस दूरी की वजह से भी यह गांव सदैव अपने प्राचीन संस्कारों सहित अध्यात्म ब्रह्मज्ञान की विभिन्न खुशबुओं से सराबोर रहता है।
चित्तौड़गढ़ जिले के गांव छीपों का आकोला में जन्में एक ब्रह्म योगी संत के आगमन से हमारे गाॅव के स्वर्ण युग का शुभारम्भ हुआ। गुरुदेव ब्रह्मयोगी ष्अटलष् कवि बालकदास के भाटोली आगमन से पुराने अध्यात्म प्रेमियों को ऐसे नवीन दिशा-निर्देश युक्त ज्ञान-अनुभव, भजन साहित्यिक एवं आध्यात्मिक चर्चाओं के लगातार अनन्त लाभ प्राप्त होते रहें कि हमारी अबूझ ज्ञान-पिपासा तेजी से शांत होती हुई सी प्रतीत हुई और शीघ्र ही स्थानीय भक्तजनों का एक ऐसा मण्डल बन गया कि अब आए दिन आध्यात्मिक चर्चाएं, स्वानुभव, भजन, कीर्तन इत्यादि अध्यात्मसोपानों को लेकर घर-घर बैठके जमने लगी। पांच-सात वर्षो के दौरान कई आध्यात्मिक सोपानों को पार करते हुए किशन, नन्द लाल, रामेश्वर लाल, सोहन, ओंकार लाल, श्रीलाल, नोक लाल, शंकर लाल, गौरी शंकर, माधव लाल, चुन्नी लाल, उदय लाल, और मांगी लाल इत्यादि कई भक्तों के स्नेहिल व्यवहार सदाचार युक्त लंबे सतसंगों से ष्घर बैठे गंगा आईष् वाली कहावत चरितार्थ होने लगी।
शनैः-शनैः इस ब्रह्म मण्डली की सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती गई। ब्रह्मज्ञानी संत कवि योगी कुलश्रेष्ठ श्री अटल कवि बालकदास गांव भाटोली में ही 7 वर्षो तलक लगातार रह कर इन हीरों को तराशते रहे।
कुछ साधनामय समय बीता कि अध्यात्मज्ञान की अनन्त रश्मियों ने भक्तों को नया जीवन-दर्शन चिंतन ही नहीं नवीन जीवन शैली भी प्रदान की। सभी के अपने-अपने अनुभव सम्मिलित होते रहे और गुरुवर ने भी अटल कवि बालकदास के नाम से अपने स्वानुभव जनित मौलिक उद्गारों को भजनों के माध्यम से संगीतमयी अभिव्यक्तियां देने का क्रम जारी रखा।
उन्हीं भजनों की सतत् श्रृंखलाओंकी कुछ लड़ियां, यानिकी कुछ फूल और गमलें ही नहीं पूरी महकती हुई वाटिकाएं अदृश्य का वृहत संग्रहालय अनुभवों का यह साहित्यिक संगीतमय खजाना जीवन को सुवासित करने के लिए आज आपके कर कमलों में शोभायमान है। कई अनन्त जिज्ञासु पाठक गण मय परिवार के लिए यह पुस्तक प्रेरणास्त्रोत के रुप में दीपक की भांति उपयोग में लेते-लेते अध्यात्म मार्ग को निष्कंटक बनाते हुए ष्अहं ब्रह्मास्मि के अन्तिम सोपान तक की सफल यात्रा हेतु अनवरत आगे बढ़ने के लिए बेशक लाजवाब और मददगार सिद्ध होगी। इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ आपके मंगलाकांक्षी। श्री गुरुवर के चरणों में शत्-शत् नमन।

अटल मण्डल
नन्द लाल मेनारिया
किशन लाल मेनारिया