गुरांसा सतसंग रा फल पाया


गुरांसा सतसंग रा फल पाया।
जैसी संगत जिसकी किनी वैसा ही गुरु धाया।।टेर।।

स्वाती नीर संगत भई शिप री, मोती बण कर आया।
वोही नीर नाग मुख झेला काला ने, काल केवाया।।1।।

पानी संग पवना रा किना चारो खूंट वरसाया।
करमा काज कोरा जो पड़िया पवना दोष बताया।।2।।

केल बेररी संगत किनी फाड़ पाना उलझाया।
जामे विष है वामे अमरत ऐसा शब्द लखाया।।3।।

कड़वो बोल खरो कर जाणो भरम भेद हटाया।
बिना परहेज रोग ना जावे करमा रा पाप धुलाया।।4।।

सतसंग बिना सतगुरु नाहि ऐसा बोल फरमाया।
अटल शब्द सतगुरु जी दिना बालक ध्यान लगाया।।5।।