मन समझ्या री वातां


गुरासा मन समझ्या री वातां
समझ गया जो मिलिया ब्रम्ह में टूटा जगरा नाता।।टेर।।

आप ब्रम्ह है ब्रम्ह आपमें खोजी खोज कर पाता।
मगन होय ज्योती रे मंाई जल्या पतंगी साथा।।1।।

फुल पुष्प रि गत न्यारी है फूल कमल जो रेता।
सहस्त्र कमल कमला रो राजा योगी योग चढ़ाता।।2।।

अपने आप की खबर पड़े जद छुट जाये संग साथा
हपना वाळी माया मानले कुण पिता कुण माता।।3।।

करी खोज काया में पाया तत्वोई तत्व समाता।
तिनो गुण विसराम किया तो कोई मन ना भाता।।4।।

सतगुरां री कृपा हो तो काटे अंक विधाता।
अटल रहे सो निज पद पावे अगम धाम ओलखाता।।5।।