साधु भाई इण विध गणपत ध्याया


साधु भाई इण विध गणपत ध्याया।।टेर।।

मूलकमल पर बसे गणेशा, चतुरदल कमल कहाया।
रिद्धि सिद्धि संग बिराजे सुखमण मारग पाया।।1।।

गुरुशब्द का एक दन्त है, सुरती शुण्ड हलाया।
समुन्दर ज्यूं उदर कहाये, भला बूरा एक माया।।2।।

सुरता नुरता दासियां है, भजना रा चंवर ढु़लाया।
भक्ति भाव रा भोग लगाया, ओऽम सोऽम गुण गाया।।3।।

पांच रंग रा आसन लगाया, मन का चूहा बनाया।।
तीनों गुण थारी करे चाकरी, ब्रह्मजोत में पाया।।4।।

अरजी मारी सुणलो गणपति, आतम भजन चढ़ाया।
अटल शब्द बालक ने दीदो, हरष-हरष गुण गाया।।5।।